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#شعر_فولکلور_گیلان_تالشی
هَتَه پاییز اومَه، غرصه نی اومَه
مْ وینده_ اَز مرا اشتن نِنومَه
تا پا نووهَ چَمَن پیلَه سْرا کو
چْمه چِمون سَری دَسمال پِنومَه!
زهرا موسی پور
پاییز که آمد غصّه نیز با آن آمد.
مرا دید، اما من اهمیتی ندادم.
تا پایش را در حیاط بزرگ خانه ی ما گذاشت
برای ندیدنش، روی چشم هایم
پارچه ای گذاشتم.